दोस्तों अगर आपने रामायण देखी या फिर पढ़ी है, तो आपको वह शिव धनुष वाला दृश्य तो याद ही होगा, जिसे कि भगवान श्री राम ने तोड़ दिया था, जहां सभी राजा महाराजा धनुष को हिला तक नहीं पाए थे, वही भगवान श्री राम ने एक हाथ से ही उस धनुष को अपने हाथों में उठाकर सभी को हैरान कर दिया था। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपको रामायण के इसी प्रसंग के बारे में बताने वाले हैं, की आखिर किस तरह भगवान राम ने शिव धनुष को अपने हाथों में उठाया, और आखिर कैसे धनुष के टूटने के बाद उन्होंने परशुराम के गुस्से को शांत किया, तो चलिए बिना किसी देरी के इस आर्टिकल को शुरू करते हैं।
शिव धनुष और भगवान राम
दोस्तों यह बात उस समय की है जब माता सीता के पिता राजा जनक ने जनकपुरी में माता सीता के विवाह के लिए, स्वयंवर रखा था, उन्होंने यह शर्त रखी थी कि जो भी राजा आकर शिव के इस धनुष को हाथों में उठाकर इस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, उसी से ही वह माता सीता का विवाह करेंगे। इस खबर को सुनते ही अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग राजा महाराजा स्वयंवर में पहुंचे थे, जिसमें कि भगवान श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण भी शामिल थे। कई राजाओं ने धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन कई मुंह के बल गिर गए, तो कई तो उस धनुष को हिला तक नहीं पाए।
इसके बाद राजा जनक ने कहा कि अब तो इस धरती पर कोई वीर ही नहीं है, जिसे सुनकर लक्ष्मण जी को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आया, इसके बाद उन्होंने राजा जनक से कहा कि मैं अभी इस धनुष को उठाकर इसे तोड़ सकता हूं, जिसके बाद राम और लक्ष्मण के गुरु विश्वामित्र ने लक्ष्मण के क्रोध को शांत करते हुए राम को धनुष उठाने को जाने को कहा, अपने गुरु के आज्ञा का पालन करते हुए राम जी धनुष उठाने गए, और उन्होंने उस धनुष को प्रणाम करते हुए एक हाथ में उस धनुष को उठाया और जब उन्होंने उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश की, तो वह धनुष टूट गया। जिससे कि राजा जनक माता सीता और वहां मौजूद सभी राजा महाराजा हैरान हो गए।
शिव धनुष और परशुराम
जैसे ही भगवान श्री राम ने शिव धनुष को तोड़ा, यह बात तुरंत ही परशुराम के पास पहुंच गई, और उन्हें बहुत ही ज्यादा आश्चर्य हुआ कि कोई कैसे इस शिव धनुष को तोड़ सकता है, इसी के साथ-साथ वह बहुत ही ज्यादा क्रोधित भी हो गए, क्रोध की आग में जलते हुए वह जनकपुरी मंडप स्थल पर पहुंचे, वह बहुत ही ज्यादा क्रोधित थे क्योंकि राम जी के हाथों से वह शिव धनुष टूट चुका था। परशुराम के गुस्से के व्यवहार को देखकर लक्ष्मण जी भी बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो उठे थे, और वह भी परशुराम के क्रोध का जवाब क्रोध से देते हुए उनका विरोध कर रहे थे। लेकिन ऐसी स्थिति में भी भगवान राम ने विनम्रता पूर्ण व्यवहार किया, और परशुराम से कहा कि शिव धनुष को तोड़ने वाला आपका ही एक दास है, राम जी के ऐसा कहने तथा विश्वामित्र द्वारा परशुराम जी को समझने के बाद ही परशुराम जी का क्रोध शांत हुआ था। Parshuram Chalisa का पाठ बुद्धि से अज्ञान के अंधियारे को मिटा देता है। इसे रोजाना पढ़ने से यश की प्राप्ति होती है।
क्या है शिव धनुष?
हम आपको बता दें कि इस शिव धनुष का नाम पिनाका था, जो की बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली धनुष था, जिसके एक वार से ही पूरी दुनिया में प्रलय आ सकता था। कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ऐसे दो धनुषों का निर्माण किया था, एक का नाम शारंग और दूसरा पिनाका। शारंग को विश्वकर्मा जी ने भगवान विष्णु को और पिनाका को भगवान शिव को दिया था, और दोनों को आपस में युद्ध करने को कहा था। किंतु युद्ध से पहले आकाशवाणी हुई थी कि अगर युद्ध हुआ तो प्रलय आ जायेगा, जिसके वजह से दोनों देवताओं ने युद्ध रोक दिया, और धनुष को पृथ्वी लोक पर फेंक दिया, जहां यह धनुष जाकर राजा जनक के पूर्वज राजा देवरथ को मिला, जो की राजा जनक के पास सुरक्षित रखी थी, जिसे की भगवान श्री राम ने उठाकर तोड़ा था।
कहां जाता है की बचपन में माता सीता ने भी इस धनुष को उठा लिया था, जिससे कि राजा जनक यह समझ गए थे कि यह कोई आम कन्या नहीं है, इसलिए वह चाहते थे कि वह सीता माता का विवाह किसी ऐसे व्यक्ति से करवाए जो इस धनुष को उठा सके।
Conclusion
उम्मीद है कि अब आपको पता चल गया होगा कि आखिर भगवान श्री राम ने किस तरह से शिव धनुष को हाथों में उठाकर उसे तोड़ा था, और किस तरह से शिव धनुष को तोड़ने के बाद भी विनम्रता पूर्वक परशुराम जी के क्रोध का सामना किया था। इससे हमें लक्ष्मण जी के निडर स्वभाव का भी ज्ञान मिलता है, कि आखिर कैसे उन्होंने परशुराम जी के फरसे का ख्याल करें बिना ही क्रोध के साथ उनका विरोध किया। और जानने के लिए MyChalisa.com को विजिट करे।